पुनरावलोकित / re-view.
चेतना और परब्रह्म
Consciousness and The Absolute.
And
चेतना से पूर्व
Prior To Consciousness.
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ॐ-कारेश्वर में 11 फरवरी 1991 के दिन संध्या-समय माता आनन्दमयी तपोभूमि पहुँचा। इस स्थान पर पहले भी वर्ष 1984 में एक दिन के लिए आया था और उसी दिन शाम को यहाँ से लौट भी गया था। उस समय यह स्थान बस विकसित हो ही रहा था। उस समय माता आनन्दमयी के एक शिष्य और भक्त यहाँ नर्मदा के तट पर घोर वन में अकेले रहते थे और यहाँ इस आश्रम के निर्माण-कार्य में संलग्न थे। ॐ-कारेश्वर पर्वत के चारों ओर पर्वत की परिक्रमा करने का यह एकमात्र मार्ग है, जिसमें नर्मदा नदी के मध्य में यह पर्वत जिसका एक नाम मान्धाता भी है, एक द्वीप की तरह दिखाई देता है। इसका विस्तृत विवरण शिव-पुराण, स्कन्द-पुराण और दूसरे भी अनेक ग्रन्थों में प्राप्त होता है। फरवरी 1991 की 11 तारीख के दिन इस स्थान पर जब एक बार पुनः आया तो यहाँ एक बड़ा आश्रम बन चुका था। दूसरे दिन 12 फरवरी की सुबह परिक्रमा के लिए चला और कुल तीन चार घंटे में परिक्रमा पूरी कर लौट भी आया, जहाँ मुझे रहने के लिए आश्रम के भू-तल से ऊपर बना एक सुन्दर कमरा दिया गया। मार्च 1991 में उस आश्रम का निर्माण कार्य करनेवाले माता आनन्दमयी के भक्त और शिष्य वहाँ से इन्दौर चले गए और अब उस पूरे आश्रम में अकेला मैं ही रह गया था। मार्च माह से जुलाई माह तक वहाँ भीषण गर्मी पड़ती है। तब निचले तल पर मैं भोजन बनाता था, दोपहर भर वहीं रहता था और शाम होते ही नर्मदा में स्नान कर ऊपर छत पर बने उस कमरे में चला जाता था जहाँ पूरी रात बिताता था। कमरे के बाहर एक रास्ता परिक्रमा मार्ग पर और दूसरा नीचे के दूसरे तल से होता हुआ भू-तल पर जाता था। परिक्रमा मार्ग पर पास ही सफेद कुटी नामक एक और आश्रम भी था, जिसे कि इंदौर स्थित श्रीरामकृष्ण मठ के द्वारा स्थापित किया गया था, और वे ही उसका प्रबंधन और उसका संचालन भी किया करते थे।
वहाँ मेरे पास एकमात्र पुस्तक थी मॉरिस फ्रीडमन द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित श्री निसर्गदत्त महाराज के बातचीत का अनुवादित ग्रन्थ :
I AM THAT
मैं यदा कदा इसी ग्रन्थ का अवलोकन किया करता था। तब एक दिन प्रेरणा हुई कि यदि इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद हो जाए तो शायद उस पुस्तक की शिक्षा को मैं अधिक अच्छी तरह समझ और ग्रहण कर सकूँगा। शाम को ॐकारेश्वर मंदिर तक गया, जहाँ छोटा मोटा बाजार है, तो राशन से मिलने वाली ₹४/- मूल्य की एक कॉपी पेंसिल और रबर खरीद लाया। फिर उस पुस्तक के कुछ प्रारंभिक अध्यायों का हिन्दी में अनुवाद करने का प्रयास किया। कुल 12 अध्याय तक कर पाया था कि सितंबर में मलेरिया की गिरफ्त में आ गया। फिर अगले कुछ वर्षों में यह कार्य वर्ष 1995 तक पूरा हुआ। इसे पुनः संशोधित कर इंक में लिखा और वर्ष 2000 में यह अहं ब्रह्मास्मि शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
कुछ मित्रों के अनुरोध पर बाद में श्री निसर्गदत्त महाराज के कुछ दूसरे मराठी ध्वनिमुद्रित (tape-recorded) निरूपणों के Jean Dunn द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद की तरह प्रकाशित ग्रन्थ -
Seeds of Consciousness
को हिन्दी में अनुवादित किया। किन्तु उस समय रहने के लिए कोई ऐसा स्थान मेरे पास नहीं था जहाँ निश्चिन्त रह कर इसे पूरा कर पाता। ऐसा ही कुछ दो और पुस्तकों -
Prior To Consciousness
और
Consciousness and Absolute
नामक दो और पुस्तकों के बारे में भी था।
इन दोनों ग्रन्थों का अनुवाद करने के प्रयास के समय भी हुआ इसलिए उस कार्य को करने का विचार त्याग दिया। दूसरा एक कारण उस समय उज्जैन में 2002 में होने जा रहा सिंहस्थ पर्व भी था जिसके लिए :
भगवान् श्री रमण महर्षि
के हिन्दी साहित्य को पुनः कुछ संशोधित और समुचित स्वरूप में प्रकाशित करना भी था। कुछ अनुवाद कार्य श्री जे. कृष्णमूर्ति के साहित्य का भी करना था। इन्हीं सारी व्यस्तताओं में समय व्यतीत होता रहा। बस यह सोचकर थोड़ा आश्चर्य अवश्य होता है कि यह सब कैसे हो रहा है।
यहाँ ब्लॉग्स लिखना प्रारम्भ होने पर यह सब और भी अधिक अकल्पनीय और आश्चर्यप्रद प्रतीत होता है।
इस स्थान पर नर्मदा नदी के तट पर नित्यप्रति नर्मदा के अनायास दर्शन होते हैं। सब कुछ सुखद और शांतिपूर्ण है, बस यही कह सकता हूँ।
उपरोक्त पोस्ट लिखे संभवतः अनेक वर्ष बीत चुके हैं, "ड्राफ्ट" पड़ा था, जिसे अपनी स्मृति के लिए यहाँ पुनः प्रकाशित कर रहा हूँ। शायद इसी ब्लॉग में कहीं और भी यह पूर्वप्रकाशित हुआ होगा। किसी पाठक का ध्यान इस पर गया हो!
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