व्यतीत
यह वस्तु, जिसे व्यतीत कह जा रहा है, समय हो सकता है और कोई व्यक्ति, इतिहास या संबंध भी, वह सब जैसे किसी दिशा में अग्रसर हो रहा होता है और किसी की भी राहकुल दूर तक जाती हुई तो नजर आती है, लेकिन वह अचानक कब और कहाँ दृष्टि से ओझल हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। व्यक्ति विशेष के संदर्भ में भी ऐसा कभी कभी हो जाता है। उम्र के आखिरी पड़ाव के आते आते। दूसरों के लिए भी और अपने लिए भी। देश, समाज, समुदाय, व्यापार-व्यवसाय, राजनीति, वैज्ञानिक अनुसंधान, कला, संस्कृति, साहित्य, किसी सामुदायिक गतिविधि और संगीत आदि के शिखर पर पहुँच जाने के बाद। किन्तु सबसे अधिक विचित्र स्थिति तो राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति की हो सकती है। और एक दिलचस्प बात यह भी है कि वह हाशिये पर जाते जाते अचानक कब विस्मृत, अप्रासंगिक और पहचान से भी परे चला जाता है इस ओर ध्यान तक नहीं जा पाता है। जिसका उल्लेख और बोलबाला और चर्चा यत्र तत्र सर्वत्र अभी हो रही होती है, जिसके भविष्य का अनुमान लगाने के बारे में ज्योतिषी भी उत्सुक हों ऐसे लोग भी एकाएक इतने अदृश्य और विस्मृतप्राय हो जाते हैं कि उनका नाम तक एकाएक याद नहीं आ पाता। उनमें कोई कोई यद्यपि अचानक जरा से समय के लिए उल्लेखनीय हो जाते हैं और फिर बस समाप्त-प्राय।
जैसे उन फिल्मों के कलाकार, संगीतकार, गीतकार और अभिनेता तथा अभिनेत्रियाँ जिनके बारे में बहुत बाद में पढ़ते हुए याद आता है कि उन व्यक्तियों से किसी समय हम कितने अभिभूत थे!
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