November 20, 2016

प्रीति की वह पराकाष्ठा

आज की कविता /
 मुद्रा और विमुद्रीकरण 
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भंगिमा ही देवप्रतिमा,
मुखमुद्रा सुसंगत,
भग्न नहीं अखंडित,
प्रीति की वह पराकाष्ठा ।
प्राणों की प्रतिष्ठा,
होती है प्रतिमा में,
देवता का आवाहन,
हो जाता है संपन्न ।
सहिष्णुता और सेवा
होते हैं अन्योन्याश्रित,
देवता तब पूजनीय,
देवता जब आत्मीय ।
एकानेक-विलक्षण
आत्मीय ईश्वरीय ।
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