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~~~~~ "अस्तित्व-एक नृत्य" ~~~~~
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17062011
© Vinay Vaidya
शब्द मौन है,
और ’मौन’ शब्द !
व्याप्त दिग्-दिगन्त में,
दिग्-दिगन्त, जिसमें ।
गति और स्थिरता का,
युगल नृत्य !
अनिर्वचनीय, अवर्णनीय !!
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~~~~~~~~~ भक्ति ~~~~~~~~~~~
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प्रभुजी ! तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अंग अंग बास समानी ॥
प्रभुजी ! तुम घन, बन हम मोरा ।
जैसे चितवत चंद चकोरा ॥
प्रभुजी ! तुम दीपक हम बाती ।
जाकी ज्योति बरै दिन राती ॥
प्रभुजी ! तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा ॥
प्रभुजी ! तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भक्ति करे रैदासा ॥
ऐसी भक्ति करे रैदासा ॥
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