March 17, 2019

असली नाम

इक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई ।
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वैसे उसका असली नाम क्या था मैं नहीं जान सका पर इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है ? वैसे भी किसे अपने खुद का भी असली नाम पता होता है? हर किसी को कोई नाम दिया जाता है और यदि वह उसे बदल भी ले तो भी वह नाम असली है इसका क्या सबूत हो सकता है? यह हो सकता है कि आप कोई दस्तावेज़ भी दिखा सकें लेकिन इससे यह कैसे साबित होगा कि यह आपका असली नाम है? हम अक्सर इस भ्रम में इतनी बुरी तरह जकड़े रहते हैं कि हमारे नाम पर कोई अजनबी भी कोई अच्छी या बुरी टिप्पणी करे तो हम प्रभावित हुए बिना नहीं रहते । कुछ देर बाद ही हमें समझ में आता है कि जिसके बारे में टिप्पणी है, वह हम नहीं, कोई और हमारा हमनाम है ।
भाषा के संबंध में अपने अनुसंधान के दौरान मेरा किसी 'फौज़िया हसन' से संपर्क हुआ । शायद वह अरबी-फ़ारसी की कोई साहित्यकार / अदीब हैं  । बात करने पर पता चला यह उसका अदीबी नाम है। लगा कि उसका कोई दूसरा -असली(?) नाम कुछ और है । इसके बाद लम्बे समय तक मेरी उससे मुलाक़ात नहीं हुई ।  फिर एक दिन अचानक उससे मिलना हुआ । तब पता चला कि उर्दू के अपने शौक़ के चलते उसका यह 'तख़ल्लुस' था ।
और जैसी कि अदीबों की फ़ितरत होती है, वे दूसरे उन लोगों से मिलना-जुलना पसंद करते हैं, जिन्हें वे बहुत बड़ा मानते हैं या जिन्हें वे प्रभावित करना चाहते हैं । यह कमोबेश दो पहलवानों की एक-दूसरे के बीच होनेवाली दिलचस्पी जैसा है । दोनों एक दूसरे के क़द्रदां और प्रतिस्पर्धी भी होते हैं ।
मेरे मन में अनायास कौतूहल हुआ कि क्या वह मुसलमान है?
यह सोचना कितना अजीब है कि कोई मुसलमान या हिन्दू, सिख, ईसाई, यहूदी या पारसी हो सकता है ।
कोई हिन्दी-भाषी, अंग्रेज़ी-भाषी, चीनी या अरबी भाषा बोलनेवाला हो सकता है, हिन्दुस्तानी, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी या जापानी, रूसी, जर्मन वग़ैरह भी हो सकता है, कोई स्त्री या पुरुष, बच्चा, जवान या बूढ़ा हो सकता है लेकिन कोई मुसलमान या हिन्दू, सिख, ईसाई, यहूदी या पारसी कैसे हो सकता है ? क्या ये उसके रहन-सहन के तौर-तरीकों के आधार पर उसका कामचलाऊ परिचय देनेवाले शब्द, शब्द-संकेत या नाम ही नहीं होते  ? क्या नाम एक पहचान भर नहीं है? यदि 'लतीफ़' का असली नाम (?) कुछ और, जैसे कि 'मोहन' या 'मोहम्मद' हो तो इससे उसके रंग-रूप, उम्र, मातृभाषा, आस्तिक या नास्तिक होने के बारे में क्या पता चलता है? लेकिन 'फौज़िया हसन' के बारे में जानकर यह सवाल मन में क्यों आता है कि क्या वह मुसलमान है? और उसकी कविता (जिसे वह 'शायरी' कहती है), पढ़ते हुए तुरंत समझ में आता है कि उर्दू भाषा से उसका बस भावनात्मक संबंध है । पर मैं यह सोचकर चिंतित हो उठता हूँ कि उर्दू से उसका यह प्रेम उसे कहाँ ले जाएगा ! क्या उर्दू से उसका यह प्रेम किसी उर्दूभाषी तथाकथित 'अदीब' से प्रेम का कारण नहीं बन सकता ? क्या मुंशी प्रेमचन्द या कैफ़ी आज़मी उर्दू के साहित्यकार नहीं थे ? शायद अमृता प्रीतम और मीनाकुमारी भी । सवाल उनके हिन्दू या मुसलमान होने का उतना नहीं है जितना कि इसका कि जब कोई अपने-आपको हिन्दू या मुसलमान कहते कहते अचानक कट्टर धर्मांध हिन्दू या कट्टर धर्मांध मुसलमान हो जाता है तब क्या उसका इस ओर ज़रा सा भी ध्यान होता है कि क्या  'हिन्दू' या 'मुसलमान' भी धर्म का असली नाम हो सकता है? क्या धर्म का कोई असली नाम है भी ? और एक नाम अगर दे भी दिया जाए, तो क्या उस नाम से धर्म की असली पहचान साबित की जा सकेगी ?
बहरहाल मैंने अपने भाषा-अनुसंधान के माध्यम से विवेचना की ।
मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि 'फ़ौज' अंग्रेज़ी 'force' का सज्ञाति (cognate) है और 'force' का ही समानार्थी है ''fort'; -और 'fort' भी पुनः संस्कृत 'वर्त' का अपभ्रंश है । जैसे संस्कृत 'विद'-जाननेवाला से अंग्रेज़ी / Latin 'fide और अरबी-फ़ारसी 'फिदा' / 'faith' होता है, वैसे ही 'वर्त' (संस्कृत - वर्तते) से 'fort' का आगमन समझा जा सकता है ।
Affidavit ऐसा ही एक शब्द है जिसका मूल 'अव-विद-वित्' में आसानी से देखा जा सकता है । 
इसी तरह सिन (इजिप्शियन देवी चन्द्रमा, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में 'सिनीवाली' अमावास्या के सन्दर्भ में प्राप्य है।) से बना हसन, हासन, हुस्न, मोहसिन, अहसान, जो सभी 'सुंदरता' के पर्याय हैं । ऐतिहासिक भूलों से सिन का अंग्रेज़ी पर्याय (sin) 'पाप' हो गया क्योंकि इजिप्शियन देवी सिन की मूर्ति की पूजा मूर्तिभंजकों की दृष्टि में 'पाप' था ।
इसके बाद फौज़िया हसन से मेरी मुलाक़ात कभी नहीं हुई । 'गूगल सर्च' किया तो पता चला कि इस नाम की दो महिलाओं में से एक तो पाकिस्तानी सिंगर हैं और दूसरी मालदीव में रहनेवाली ।
फौज़िया हसन के बारे में इससे ज़्यादा मुझे कुछ नहीं पता ।
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