May 16, 2014

~~ नमो नमः ~~

पुनर्पाठ / (मूलतः 04 October 2013 को इसी ब्लॉग में प्रकाशित )
~~ नमो नमः ~~
(©विनय कुमार वैद्य.)
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कभी खयाल नहीं आया था कि इस विषय पर लिखूंगा । लेकिन आज सुबह-सुबह सपने में उनके दर्शन हो गये । कल रात कहीं पढा था कि उनके बयान पर बावेला मच गया है । शायद इसलिए वे मेरी छोटी सी कुटिया पर दस्तक देने आ गये थे । मैं तो धन्य हो गया । लग तो रहा था कि सपना ही है, लेकिन ऐसा सपना भी किसे नसीब होता है? मैंने चरण-स्पर्श किया तो उन्होंने मुझे गले लगा लिया । मैं हर्ष-विभोर हो उठा । सपने में ऐसे ही कभी एक बार 'ठाकुर' ने भी मुझे गले लगा लिया था । 'ठाकुर' अर्थात इनके गुरु ने, जी, श्री रामकृष्ण ने ।
जैसा कि ऐसे सपनों में पहले का मेरा अब तक का अनुभव रहा है, इन दर्शनों में संवाद प्रायः मौन ही होता था । जब मैंने पुनः झुककर उन्हें चरण-स्पर्श किया, तो वे बोले -
"तुम राम को 'यम' के बारे में बतला रहे थे न?"
"जी!"
"तुम मेरी पुस्तक में कुछ ढूंढ रहे थे न?"
"जी, लेकिन फिर जरूरत नहीं पडी ।"
"जरूरत थी ! तुम्हें साधनपाद का सूत्र ३२ चाहिए था !"
"जी "
"शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः ॥"
(स्वामी विवेकानन्द /  पातंजल राजयोग)
उन्होंने कृपापूर्वक मुझे समझाया ।
"नरेन्द्र यही कह रहा था ।"
मैं असमंजस में पड गया ! पर नरेन्द्र तो उनका ही नाम था ! वे किस नरेन्द्र की बात कर रहे थे ! मैं प्रश्नवाची दृष्टि से उन्हें देखने लगा ।
देखो, वैसे मेरा नाम भी नरेन्द्र था किन्तु फिर मेरा संन्यास का नाम विवेकानंद हो गया, इसलिए तुम शायद भ्रमित हो रहे हो । मैं तो नरेन्द्र मोदी के बारे में कह रहा हूं । वह बिल्कुल ठीक कह रहा है ।"
"जी"
"शौच, प्रथम नियम है "
अच्छा तो वे राजयोग के बारे में कह रहे थे , इसी बीच मोबाइल में अलार्म बज उठा और मैं जागकर चकित होकर सुबह के कार्य में लग गया । हां, गांधीजी भी तो स्वच्छता को प्रथम स्थान देते थे । सचमुच, साफ़-सुथरा शौचालय प्रथम जरूरत है हर मनुष्य की । शुचिता से प्रारंभ ।
मैं नहीं जानता कि इससे आगे क्या लिखूं इस पोस्ट में ।
प्रासंगिक प्रतीत होने से इसे लिखने का साहस कर रहा हूं । यदि किसी की भावनाएं आहत हुईं हों तो क्षमा चाहूंगा ।
©विनय कुमार वैद्य.
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