~~~~’समय’ का सापेक्षता-सिद्धान्त~~~~
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’समय’ का ’सापेक्षता-सिद्धान्त’
(सौजन्य : जया श्रीनिवासन के लघु आलेख से प्रेरित)
हमारे ’समय’ में समय रेंगता था ।
-कहते हैं दादाजी ।
पिताजी के समय में वह दौड़ने लगा था ।
और मेरे समय में,
समय उड़ने लगा है ।
मेरे बेटे के लिये समय सिमट गया है ।
वह जानता है कि ’मॉउस’ की एक ’क्लिक’
कितना ’डेटा’ ’डॉउनलोड’ कर सकती है,
-क्षणांश में !!
मेरा बेटा हो या किसी दिहाड़ी ग़रीब मज़दूर का बेटा हो,
उनका ’समय’ उन्हें लील रहा है,
’समय’ से बहुत पहले,
होते जा रहे हैं,
-परिपक्व,
जैसे कोई फल ’पक’ जाता है,
’ऑक्सीटोसिन’ की खूराक से,
’कार्बाइड’ के असर से,
एक ही रात में
-जिसे ’काल’ जल्दी ही खा लेना चाहता है,
’काल’,
-जो अपनी रफ़्तार में हर जगह पहुँच जाता है,
’डेटा’ की तरह,
बेटे समय से बहुत पहले,
-बूढ़े हो चले हैं,
-इस समय में ।
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अति सुन्दर. एक सेवा निवृत्त अधिकारी किसी कार्य से अपने दफ्तर गए . बातों ही बातों में वहां की एक महिला कर्मी ने पूछा, सर आप का समय कैसे कटता है. त्वरित उत्तर था, मेडम आप भ्रम में हो. समय को हम नहीं काटते, वह हमें काटता है.
ReplyDeleteमेरा बेटा हो या किसी दिहाड़ी ग़रीब मज़दूर का बेटा हो,
ReplyDeleteउनका ’समय’ उन्हें लील रहा है,
’समय’ से बहुत पहले,
होते जा रहे हैं,
-परिपक्व,
जैसे कोई फल ’पक’ जाता है,
’ऑक्सीटोसिन’ की खूराक से,
’कार्बाइड’ के असर से,
एक ही रात में
-जिसे ’काल’ जल्दी ही खा लेना चाहता है,
’काल’,
-जो अपनी रफ़्तार में हर जगह पहुँच जाता है,
’डेटा’ की तरह,
बेटे समय से बहुत पहले,
-बूढ़े हो चले हैं,
-इस समय में ।
man ko jhinjhodne wali panktiyan... sundar kavita ..
Thanks,
ReplyDeleteP.N. Subramanian,
Thanks,
Aparna Manoj Bhatnagar,
Regards,