January 25, 2024

Two Identifications.

And An Identity.

दो व्यक्तित्व और एक अस्मिता

--

अस्मिता एक संज्ञा शब्द है और इसके साथ एक शब्द को विशेषण की तरह संयुक्त और प्रयुक्त करना कितना उचित है, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन तात्कालिक रूप से अभी यही व्यावहारिक जान पड़ता है। 

Question प्रश्न  

मनुष्य और पशु के बीच क्या समानताएँ और क्या भिन्नताएँ हैं?

Answer / उत्तर :

सुबह नींद खुलते ही इस सवाल से सामना हुआ। जब तक सो रहा था कोई सवाल नहीं था। न कोई सवाल था, न समस्या थी। सब कुछ अनायास था। और शरीर बिना किसी कठिनाई के अपना कार्य स्वचालित रीति से कर रहा था। श्वास आ जा रही थी, arteries और veins - धमनी और नसों में रक्त संचार सहज गति से हो रहा था। जैसा हमेशा होता है, उसी से तरह बीच बीच में स्वप्न भी प्रकट और विलीन हो रहे थे। कभी कभी किसी बाहरी कारण से या स्वप्न के प्रभाव से नींद खुल भी सकती है। सामान्यतः नींद पूरी होने के बाद जागने पर कुछ समय तक केवल शरीर ही अपना कार्य बिना किसी व्यवधान के करता रहता है और नाम मात्र के लिए ज्ञानेन्द्रियाँ भी बिना कोई प्रतिक्रिया किए केवल संवेदनशील भर होती हैं। जैसा कि बचपन में अवश्य ही बहुत बार हुआ करता था। बचपन के बीतते बीतते यह सब विस्मृत होता चला गया। जागते ही, जैसे ही यह सवाल सामने आया, वह बचपन भी जैसे याद आ गया। नेपथ्य में बचपन की वह स्मृति थी और मन नामक वस्तु जो कि नींद में विलुप्त सी थी, जागते ही पुनः प्रकट और सक्रिय हो उठी। तो क्या सुषुप्त होने पर यह वस्तु नहीं रह जाती!

जब तक सुषुप्ति थी, तब तक सवाल कहीं नहीं था। न किसी प्रतीति, न भावना और न शाब्दिक विचार की तरह ही कोई सवाल वहाँ विद्यमान था।

सुषुप्ति खुलते ही कुछ समय तक बस उस जागृति का उन्मेष था। न कोई प्रतीति, न अनुभूति, न भावना या शाब्दिक रूप में उत्पन्न हुआ कोई विचार। और इसलिए, या शायद इसीलिए वहाँ "अस्मिता" भी केवल भान ही थी, अर्थात् "अस्ति" के संवेदन के साथ। स्पष्ट है कि "अस्ति" ही "भाति" था और "भाति" ही "अस्ति" । और इसलिए "अस्मि" के रूप में कोई ऐसी "अस्मिता" भी तब नहीं थी। "अस्ति" तो था किन्तु "अस्मि" नहीं था। "अस्ति" ही "भान" या "भाति" और "आस्तिकता" भी था।

"अस्मि" (Identification) तो प्रतीति अर्थात् एक पहचान की तरह उभरी, जो स्मृति में अंकित हो गई। मन भी उसके ही साथ अस्तित्व में आया। मन अर्थात् वह जो कि तादात्म्य (Identification) है।  इसलिए शरीर जो कि प्रकृति है और मन भी, जो कि प्रकृति ही है किसी पूर्णतः दक्ष यंत्र की तरह सहज और अनायास अपने स्वचालित ढंग से कार्य किया करते हैं। और वे दोनों ही पशु या वनस्पति के रूप में प्रकट और अभिव्यक्त प्रकृति ही हैं।

"अस्" धातु के वर्तमान काल (लट् लकार) अन्य पुरुष तीन रूपों - अस्ति स्तः सन्ति में प्रथम ही एकवचन अस्ति है, जो उत्तम पुरुष होकर "अस्मि" हो जाता है, जिससे "अस्मिता" शब्द व्युत्पन्न होता है। व्यवहार में भी "पहचान" के लिए अत्यन्त उपयोगी भी अवश्य ही है, इसमें सन्देह नहीं, किन्तु यह "पहचान" प्रथमतः मन और बाद में शरीर की होती है।

इस तरह एक ही अस्मिता एक ही साथ दो व्यक्तित्वों - शरीर और मन दोनों ही से एक साथ तादात्म्य कर लेती है। अब यह सवाल कि मनुष्य और पशु के बीच क्या समानताएँ और क्या समानताएँ होती हैं?

पशु शब्द का संबंध - "पश्यति", "पश्यते" और "पाश्यते" से है।  जो देखता है, जिसे देखा जाता है और जो (इस प्रकार से या और किसी अर्थ में) पाशबद्ध होता है, वह पशु है। शरीर और मन दोनों पशु अर्थात्  पाशबद्ध हैं, और उन दोनों को जो देखता  है वह देखनेवाला या जाननेवाला स्वयं न तो शरीर है, न मन है। मन > मन् उ > मनु > मनुशः > मनुष्य (जैसे भवि > भविशः > भविष्य) पशु भी शरीर और मन होता है, जबकि मनुष्य शरीर और मन होने के साथ साथ उन्हें देखता और जानता भी है और इसलिए वह उन्हें "मेरा शरीर" तथा "मेरा मन" कहता है। जैसे पशु अपनी प्रकृति के अनुसार दुष्ट या साधु हो सकता है वैसे ही मनुष्य भी अपनी प्रकृति के अनुसार दुष्ट या साधु हो सकता है। भेद केवल इतना है कि मनुष्य दुष्टता और साधुता दोनों ही को स्वरूपतः जानता है और उसमें विद्यमान यही विवेक पशु से उसकी भिन्नता सिद्ध करता है।

***



No comments:

Post a Comment