छोटी कविता
--
खग ही जाने खग की भाषा,
वैसे ठग ही ठग की आशा!
--
छोटी कविता
--
खग ही जाने खग की भाषा,
वैसे ठग ही ठग की आशा!
--
Verb and Action.
घटना और कर्म
Question / प्रश्न 43
What is the difference between what happens and what is done?
घटना और कर्म के बीच क्या संबंध या अन्तर है?
--
विषय / object, विषयी / subject और and चेतना / consciousness.
One evening sitting on the river-bank when the waters were flowing slowly and the breeze fast, one was looking at the surroundings, observing the trees shedding the dry ripe leafs dancing in the middle while falling on the ground.
A boat carrying 3 or 4 persons sailing upon the river going away from this bank and slowly reaching the another.
It was a fishing boat where they would often use it sometimes catching the fish from the river and sometimes carrying the people across from one to another bank.
One was just sitting on a flat and broad smooth rock there. A traveller was also there sitting besides him. The two knew one-another well enough and a formal conversation started between the two.
Though the people living in the nearby villages were neither very educated nor learned, they often go to and visit those nearby Ashrams where some spiritual teachers and the aspirants lived, would go and used to visit them.
The visitor beside him was one of those many visitors and so after exchanging a formal Namaste he began discussing a rather serious topic of Vedanta in a way that looked like a very simple question.
He asked :
What is the difference between what happens and what is done?
घटना और कर्म के बीच क्या संबंध या अन्तर है?
The boat had so far reached the other bank and may be returning soon.
There were no clouds at all in the sky and the dry leafs would occasionally touch them.
He took a leaf and asked to the visitor :
Where-from has come this leaf?
Oh! Don't you see they are falling from the trees?
Well, what do you think! Do they know and decide themselves about falling on the ground and flying in the wind, or this is a happening that is taking place without their voluntary or involuntary action?
The visitor smiled, and at once sensed that his friend was not kidding but was rather serious about the question asked by him.
You see there are the pebbles, small and big stones strewn here and there on the ground. They can't fly in the air, nor can swim or float upon the waters.
What is the difference between them and the sentient beings like the birds, the fish, the animals, the trees and the humans?
Obviously it's the consciousness or the sentience that makes an object either a material thing or a living being.
So, what is then Life?
Isn't Life itself the consciousness?
But the words don't take us too far so as to arrive at a conclusion about :
What is the difference between what happens and what is done?
घटना और कर्म के बीच क्या संबंध या अन्तर है?
The falling of the leafs on the ground or on the waters in the river and getting carried by them is a happening, while sailing the boat across the waters is an action.
But the common element between the two - either a happening or an action is the presence of someone who knows.
So there is this knowing / awareness / consciousness Underlying Principle.
Let us try to understand this in a better way. With your eyes open or shut, try to touch your thumb with your forefinger. You can feel / experience this again in two ways.
You can either feel / experience your forefinger through your thumb and can call the thumb the subject and your forefinger the object. Again, you can repeat the same activity by assuming your forefinger as the subject and your thumb as the object.
The knowing, the awareness / the consciousness though remains the same, a superficial entity "the Thought" appears through this happening and is mistaken to be the one - independent thinker.
The memory causes the illusion and the apparent imposed continuity that is overlooked and the thinker owns the person.
Let us see this again to understand this in the framework of Vedantik parlance.
विषयी / The subject, विषय / the object and the चेतना / the consciousness together constitute the fictitious entity : the thinker, the mind, the ego, the intellect, the self, the individual, as if as to have existence other and one independent from the rest.
Thinking is the happening, while the Thinker, -an idea only.
This very thinker, only because of the In-attention becomes the ego or self.
The same assumes the role of "doing". There is neither the action nor the one who performs the action.
All action and the idea "I do", -the sense of doing something wrong or right, virtuous or sinful is but only in, and the movement of thought.
The Attention of this In-attention, awareness of this whole activity on the part of the thought and memory liberates the mind from the ill-fated ill-conceived notion of the doer-ship.
***
स्मृति, पहचान और अतीत
--
सुखद और दुःखद स्मृतियाँ बरबस हर किसी व्यक्ति को भावुक, विह्वल और उद्वेलित कर देती हैं। कभी कभी तो मनुष्य चाहकर भी उनके प्रभाव से बच नहीं पाता। कभी कभी मनुष्य उनसे उत्पन्न हो रही यंत्रणाओं और पीड़ाओं से इतना अधिक त्रस्त हो जाता है कि उसे लगने लगता है कि मृत्यु होने पर ही उनसे छुटकारा मिल सकता है। यह एक अस्थायी मनःस्थिति ही तो होती है। और इस बारे में वह जितना अधिक सोच विचार करता है वह उतना ही अधिक उलझता चला जाता है।
मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि अतीत की ऐसी दुःखद घटनाओं को दुःस्वप्न समझकर भुला दिया जाना चाहिए। लेकिन यह भी सत्य है कि संसार में क्षण प्रतिक्षण कोई न कोई ऐसा कारण बन जाता है जो अतीत के घावों को कुरेद कर उसे हरा करता रहता है। और, क्या यह संभव है कि किसी स्थान, संबंध, परिचय आदि को हमेशा के लिए त्याग दिया जाए!
ध्यान से देखें तो स्मृति, पहचान और अतीत एक ही वस्तु या घटना के तीन अलग अलग नाम भर होते हैं।
मन या तो इन तीनों से प्रभावित हो जाता है, या तीनों ही से अप्रभावित रह सकता है।
इसलिए मन ही इन तीनों कोणों से बननेवाला त्रिभुज या उस त्रिभुज का चौथा कोण होता है।
क्या यह मन स्वयं ही स्वयं को जानता है?
या, क्या मन का एक हिस्सा मन के दूसरे हिस्से को?
मन सतत होती रहनेवाली प्रक्रिया है, जबकि इस मन को या इस प्रक्रिया को जाननेवाला तत्व कोई प्रक्रिया नहीं, बल्कि ऐसी एक स्थिर आधारभूत वास्तविकता होता है जो मन के सतत परिवर्तित होते रहने से नितान्त अछूती कोई नित्य वर्तमान वस्तु है।
इसलिए न तो मन को दो हिस्सों में बाँट जा सकता है, न ही उसका एक हिस्सा दूसरे को जानता या जान सकता है। मन को जाननेवाली यह वस्तु है जागरूकता।
जागरूकता की यह वास्तविकता हमारे मन के जागने, स्वप्न या गहरी स्वप्नरहित निद्रा में सोए होने की स्थिति में भी यथावत् विद्यमान रहती है।
अपना ध्यान इस सत्य पर देकर हमें मनरूपी माया से छुटकारा मिल सकता है।
यह ध्यान किसी प्रकार की नई या पुरानी कोई वैचारिक प्रक्रिया या चिन्तन न होकर इस विषय में हमारी गंभीरता और उत्सुकता का परिणाम होता है।
इसे ही पातञ्जल योगसूत्र के माध्यम से भी समझा जा सकता है जहाँ स्मृति को भी सुषुप्ति की ही तरह मन की एक विशिष्ट वृत्ति ही कहा गया है। और जब योगाभ्यास के माध्यम से वृत्तिमात्र का ही निरोध करने की बात कही जाती है तो इस प्रयत्न में मन को ही निरुद्ध किया जाता है जिसे मनोनिरोध या चित्तवृत्तिनिरोध भी कह सकते हैं। इस प्रकार, योगाभ्यास का प्रयत्न करने में चित्तवृत्ति के निरोध परिणाम, एकाग्रता परिणाम, समाधि-परिणाम, तीनों का ही आवश्यक और समान महत्व होता है। और इन तीनों के सम्मिलित प्रभाव को ही संयम कहा जाता है : त्रयमेकत्र संयमः।।
योग की दृष्टि व्यापक परिप्रेक्ष्य में अभ्यास के महत्व को रेखांकित करते है।
दूसरी ओर --
संवेगानामासन्नः।।
इस योगसूत्र की दृष्टि से आत्मानुसंधान करते हुए आत्मा के तत्व को जानने का यत्न किया जाता है और इसे ही साँख्यनिष्ठा कहा जाता है। किसी व्यक्ति की स्वाभाविक निष्ठा कर्म करने अर्थात् कर्म-योग के प्रति, तो किसी और की निष्ठा स्वाभाविक रूप से आत्मानुसंधान के प्रति हो सकती है।
दोनों ही प्रकार के व्यक्ति ईश्वर की मान्यता को सत्य या कल्पना मानते हुए भी अपनी अपनी निष्ठा के अनुसार अंतिम सत्य की प्राप्ति कर लेते हैं।
***
सिर्फ़ उन्हें ही जो कि तब तक जीवित रह पाएँगे!
--
Sun's Corona!
"उसके नोट्स" से
2019-2023
--
25 / 26 दिसंबर 2019 को सूर्य-ग्रहण था। जब कोरोना-काल शुरू हुआ था। 29 दिसंबर 2023 तक यह रहेगा।
महाभारत तृतीय विश्वयुद्ध में भारत (अर्जुन) का पुत्र इसरायल (अभिमन्यु) चक्रव्यूह में प्रविष्ट हो चुका है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन अभिमन्यु को बचाने और उसकी सहायता करने के लिए कुछ नहीं कर सका था। पर इस बार ऐसा नहीं होगा!
किसी ने कहा था :
अभी तो महाभारत युद्ध चल रहा है!
ये 18 दिन ब्रह्मा / देवताओं के 18 दिन हैं, न कि मनुष्यों के!
मनुष्यों के लिए तो अभी द्वापर युग ही है!
14 अक्टूबर 2023 के दिन तक, सूर्य-ग्रहण होने तक यह युद्ध "लगभग" समाप्त हो जाएगा।
सञ्जय (इन्टरनेट) के माध्यम से इस युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र (अन्धा-युग) से कर रहा है।
पता नहीं यह कल्पना है या सत्य!
समय आने पर ही पता चलेगा।
सिर्फ उन्हें ही, जो कि तब तक जीवित रह पाएँगे!
***
अबोला हो गया!
--
सुबह की सैर पर जाते हुए दो पंक्तियाँ गुनगुना रहा था ।
मुलाहजा फ़रमाइये :