कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 11
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उन्हें मेरा 'पात्रता', 'कर्तव्य', 'अधिकार' और 'उत्तरदायित्व' का 'मॉडल' पसंद आया ।
'देखिए, इस तरह से मैंने सोचा कि जब सचमुच हम 'अधिकार' की बात करते हैं, तो इससे जुड़ी बाक़ी तीन बातों पर ध्यान देना भूल जाते हैं। सिर्फ 'पात्रता' होने से 'अधिकार' नहीं मिल जाता। लेकिन बोलचाल की भाषा में हम इस बुनियादी शर्त को भूल जाते हैं, या जान-बूझकर नज़रंदाज़ कर देते हैं। और ऐसा करना ही हमारी 'पात्रता' की वैधता को संदिग्ध बना देता है।'
'जी,…'
'लेकिन मैं आपके 'समाज के अवचेतन' वाली बात से ज्यादा प्रभावित हुआ। आप तो विद्वान हैं, लेकिन मैं भी इन बातों पर सोचता हूँ और समझने की क़ोशिश करता हूँ। मुझे लगता है कि आपकी इस बात पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है।'
'मैं इससे भी एक क़दम पीछे जाना चाहता हूँ। '
'मतलब?'
'मतलब यह कि क्या मनुष्य कुछ करने या न करने के लिए स्वतंत्र होता है?'
'वह तो वह है ही ! स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा।'
थोड़े नक़ली उत्साह से वे जवाब देते हैं। लेकिन तत्क्षण ही उन्हें अपनी बात में छिपी भूल नज़र आ जाती है।
'हाँ, यह तो मानना होगा कि आपके मॉडल में अधिकार तीसरी स्टेज पर है, इसलिए वह जन्म-सिद्ध कैसे हो सकता है?'
'मतलब स्वतंत्रता नामक कोई चीज़ वस्तुतः होती ही नहीं ?'
'जी।'
वे सोच में पड़ गए।
'और धार्मिक या राजनैतिक स्वतंत्रता?'
'धर्म तो सदैव एक स्वतंत्र तत्व है, लेकिन धार्मिक या राजनैतिक स्वतंत्रता जो वास्तव में एक ही चीज़ के दो अलग अलग नाम हैं, का तात्पर्य है किसी समुदाय या वर्ग के अधिकारों की स्वतंत्रता।'
'और स्वतंत्रता से आपका क्या आशय है?'
'धर्म ही एकमात्र स्वतंत्र तत्व है जो सम्पूर्ण अस्तित्व की तमाम गतिविधियों को संचालित करता है।'
'और वह स्वतंत्र कैसे है?'
'बल्कि स्वतंत्र से बढ़कर, वह तो निरंकुश भी है, क्योंकि उस पर किसी दूसरे का नियंत्रण नहीं हो सकता।'
'ईश्वर?'
'क्या धर्म ही एकमात्र ईश्वर नहीं है?'
'तो क्या मनुष्य केवल उद्वेलित होने, एक दूसरे से लड़ने झगड़ने के अलावा, और कुछ नहीं कर सकता ?'
'मनुष्य तो चाहने या न चाहने के लिए भी कहाँ स्वतंत्र है?'
'तो क्या मनुष्य किसी बात के लिए स्वतंत्र है भी?'
'हाँ सिर्फ यह देखने के लिए कि स्वतंत्रता शब्द सीमित सत्ता पर लागू नहीं होता।'
'जी धन्यवाद, मैं बस स्तब्ध हूँ, मैंने कभी इस तरह से नहीं सोचा था।'
'यू आर ऑल्वेज़ वेलकम !'
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उन्हें मेरा 'पात्रता', 'कर्तव्य', 'अधिकार' और 'उत्तरदायित्व' का 'मॉडल' पसंद आया ।
'देखिए, इस तरह से मैंने सोचा कि जब सचमुच हम 'अधिकार' की बात करते हैं, तो इससे जुड़ी बाक़ी तीन बातों पर ध्यान देना भूल जाते हैं। सिर्फ 'पात्रता' होने से 'अधिकार' नहीं मिल जाता। लेकिन बोलचाल की भाषा में हम इस बुनियादी शर्त को भूल जाते हैं, या जान-बूझकर नज़रंदाज़ कर देते हैं। और ऐसा करना ही हमारी 'पात्रता' की वैधता को संदिग्ध बना देता है।'
'जी,…'
'लेकिन मैं आपके 'समाज के अवचेतन' वाली बात से ज्यादा प्रभावित हुआ। आप तो विद्वान हैं, लेकिन मैं भी इन बातों पर सोचता हूँ और समझने की क़ोशिश करता हूँ। मुझे लगता है कि आपकी इस बात पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है।'
'मैं इससे भी एक क़दम पीछे जाना चाहता हूँ। '
'मतलब?'
'मतलब यह कि क्या मनुष्य कुछ करने या न करने के लिए स्वतंत्र होता है?'
'वह तो वह है ही ! स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा।'
थोड़े नक़ली उत्साह से वे जवाब देते हैं। लेकिन तत्क्षण ही उन्हें अपनी बात में छिपी भूल नज़र आ जाती है।
'हाँ, यह तो मानना होगा कि आपके मॉडल में अधिकार तीसरी स्टेज पर है, इसलिए वह जन्म-सिद्ध कैसे हो सकता है?'
'मतलब स्वतंत्रता नामक कोई चीज़ वस्तुतः होती ही नहीं ?'
'जी।'
वे सोच में पड़ गए।
'और धार्मिक या राजनैतिक स्वतंत्रता?'
'धर्म तो सदैव एक स्वतंत्र तत्व है, लेकिन धार्मिक या राजनैतिक स्वतंत्रता जो वास्तव में एक ही चीज़ के दो अलग अलग नाम हैं, का तात्पर्य है किसी समुदाय या वर्ग के अधिकारों की स्वतंत्रता।'
'और स्वतंत्रता से आपका क्या आशय है?'
'धर्म ही एकमात्र स्वतंत्र तत्व है जो सम्पूर्ण अस्तित्व की तमाम गतिविधियों को संचालित करता है।'
'और वह स्वतंत्र कैसे है?'
'बल्कि स्वतंत्र से बढ़कर, वह तो निरंकुश भी है, क्योंकि उस पर किसी दूसरे का नियंत्रण नहीं हो सकता।'
'ईश्वर?'
'क्या धर्म ही एकमात्र ईश्वर नहीं है?'
'तो क्या मनुष्य केवल उद्वेलित होने, एक दूसरे से लड़ने झगड़ने के अलावा, और कुछ नहीं कर सकता ?'
'मनुष्य तो चाहने या न चाहने के लिए भी कहाँ स्वतंत्र है?'
'तो क्या मनुष्य किसी बात के लिए स्वतंत्र है भी?'
'हाँ सिर्फ यह देखने के लिए कि स्वतंत्रता शब्द सीमित सत्ता पर लागू नहीं होता।'
'जी धन्यवाद, मैं बस स्तब्ध हूँ, मैंने कभी इस तरह से नहीं सोचा था।'
'यू आर ऑल्वेज़ वेलकम !'
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