May 22, 2013

-- उन दिनों -७५. --




उन दिनों -७५.
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अविज्नान  के बारे में  अक्तूबर ’१२ में अचानक पता चला । फ़ेसबुक पर ।
उसका आई. डी. देखकर उसकी याद आई, लेकिन यह कल्पना नहीं थी, कि यह उसका ख़ुद का ही निजी यूज़र अकाउन्ट होगा ।
हैरत की बात यह कि पिछले साल भर से उसका आई डी नज़रों के सामने से कितनी ही बार गुज़रा, लेकिन जर्मन भाषा में होने के कारण दिलचस्पी नहीं हुई । कितने ही जर्मन दोस्त हैं मेरे फ़ेसबुक पर ।  लेकिन आज अचानक जब उज्जैन पर लिखे उसके वृत्तान्त पर दृष्टि पड़ी तो एकदम विस्मित हो उठा । ना जाने किस वेष में बाबा, ...!
और उसी वक्त बिजली का चले जाना दु:खी कर गया । मेरा यू.पी.एस. बिजली जाते ही बन्द हो जाता था । बिजली गई तो सबसे पहले यू.पी.एस. को अलग कर दुकान पर दे आया । रिपेयर या रिप्लेस करने के लिये । सोच रहा था, अब न जाने कब तक ऐसे ही रहना होगा । शाम को ही मेकेनिक उसे दुरुस्त कर वापस लगा गया तो सबसे पहले उसकी वॉल के दर्शन किए । उसके आई.डी. से भले ही उसके बारे में अनुमान करना कठिन था, लेकिन उसके फोटोज़ में उज्जैन के बहुत से फ़ोटो देख कर देर तक रोमाँचित होता रहा । वहाँ रवि, नलिनी, अपर्णा, ’गरगजी’ (सर) सभी तो थे ! और था वह अश्वत्थ भी, त्रिवेणी संगम पर ! वह इतना बढ़ चुका था कि मेरा पास का अश्वत्थ उसके सामने बच्चा लगता ।  पता नहीं कब तक आँखों से अश्रुधारा बहती रही । फ़िर उसका आई. डी. ’नोट’ किया । नहीं, अभी उसे ’मेसेज’ नहीं करूँगा । दरअसल मैं उसे चौंकाना नहीं चाहता था ।
काफ़ी देर तक सोचने के बाद मैंने उसके बहुत से ’पिक्स’ ’कॉपी’ कर ’सेव’ कर लिए । फ़िर उसकी दूसरी चीज़ें देखने लगा । उसकी जर्मन कुछ कुछ समझ में आती थी । लेकिन बहुत समय से जर्मन के टॅच में न रहने के कारण कठिनाई हो रही थी । आख़िर थक कर सिस्टम बन्द कर सो गया । लेकिन नींद कहाँ थी आँखों में!
ऊपर छत पर गया, बहुत ठण्डी हवा में चहलकदमी करता रहा । घर के सामने प्रहरी सा खड़ा नीम चुप था । वह सोता नहीं । अश्वत्थ तो फ़िर भी सो जाया करता है । नीम शायद स्वप्न देखता है । मुझे समझ में आया कि अश्वत्थ जहाँ शिव और नारायण है, वहीं नीम ’स्कन्द’ है । फ़िर तो कोई वृक्ष ’गणेश’ भी होगा! मैं अनुमान नहीं कर सका । फ़िर सोचा, हाँ नीम तो ’स्कन्द’ अवश्य है, क्योंकि नीम गन्धकयुक्त है, गन्धक ’मंगल’ का कारक है, और ’मंगल’ कुमार है ! और ’कुमार’ स्कन्द !! फ़िर ध्यान आया कि सफ़ेद अर्क (आँकड़ा) गणेश है । वे सब मेरे आसपास हैं । सारे वृक्षों में वे अपने चेहरे छिपाए हैं और भक्तों के सामने आते ही ही चेहरे से पर्दा हटा देते हैं । शर्त बस इतनी है कि भक्त उन्हें पहचानने के लिए उत्कण्ठित हो । दर्शन की अभीप्सा रखता हो । वे भक्त पर हावी नहीं होते । इतना ही सच यह भी है उनकी इच्छा न हो तब तक भक्त के मन में उनके स्वरूप को जानने की जिज्ञासा भी नहीं पैदा होती । वे निर्लिप्त अपने इष्ट के ध्यान में मग्न रहते हैं । सफ़ेद अर्क की जड गणेश ही तो हैं ! इसलिये अर्कपुष्प शिव को अर्पित किया जाता है, अर्थात अपनी बुद्धि, तथा उसके पर्याय चित्त, अहं तथा मन भी शिव को समर्पित कर देना ही सच्ची भक्ति है । ॐ गं गणेशाय नमः ।
सोचते सोचते छत पर वॉकिंग करता रहा । मन थोड़ा शान्त हुआ तो नीचे आकर सो गया ।
सुबह मोबाइल का अलार्म बजा तो पानी भरने के लिए ’मोटर’ चालू करना पहला सबसे ज़रूरी काम था । उसके बाद ’फ़्रेश’ होकर अख़बार पढ़ता रहा । इन दिनों दुनिया जिन हादसों से गुज़र रही है, उनका जायजा लिया और फ़िर दूसरे जरूरी काम किए । नौ बजे के क़रीब कंप्यूटर ऑन किए दो मिनट हुए थे कि लाइट चली गई । कंप्यूटर बन्द किया और दूसरे ज़रूरी कामों में लग गया ।
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फ़िर लम्बे समय तक दूसरी परेशानियों में फँसा रहा । धीरे धीरे उन सब की ’लिंक’ मिली । अपर्णा, नलिनी, रवि, और ’शिव’ की । सोचना तक मुश्किल था कि शिव ’फ़ेस-बुक’ पर होंगे ! और ’शिव’ के साथ साथ वह माता शेराँवाली, वह माँ भवानी ’महाकाली’ जिनके बारे में  'Silent Dialogues’ में थोड़ा सा ही ज़िक्र कर पाया था । हिम्मत नहीं हो रही थी पुराने सिलसिलों को आगे बढ़ाने की । और ख़ुशी की बात यह थी कि सभी अपनी अपनी दुनिया में इतने व्यस्त, शायद मशग़ूल भी थे कि मुझे ’सर्च’ करने का ख़याल शायद ही किसी को आया होगा ! और चूँकि पब्लिक प्रोफ़ाइल में मेरा आई.डी. जिस नाम से है, उस नाम के ढेरों अन्य यूज़र्स ’फ़ेसबुक’ पर हैं, शायद इसलिये कभी ’सर्च’ किया भी होगा तो मुझे नहीं देख पाए होंगे । लेकिन हैरत इस बात की थी कि ’सर’ के बारे में बस एक दो फोटोज़ के अलावा कहीं कुछ न मिल सका ।
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फ़िर एक दिन हिम्मत कर ’नलिनी’ को एक ’मेसेज’ किया । बहुत दिनों तक इन्तज़ार करने के बाद भी जवाब नहीं आया । बस यूँ ही दिन गुज़रते रहे ।
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गर्मियाँ बीत रही हैं । आकाश में दिन भर तेज़ धूप के समय अपने कमरे में बस पड़ा रहता हूँ । शाम को छत पर घूमते हुए कुछ राहत मिलती है, और अब जब ’उन दिनों’ का क्रम आगे बढ़ाया है तो अपर्णा और ’सर’ की याद आती है । अपर्णा शायद विदेश चली गई थी, पति के साथ । ’सर’ अकेले भोपाल में रहते होंगे । पिछले किसी ब्लॉग-पोस्ट में मैंने इसका उल्लेख नहीं किया था । तब वे किसी दूसरे शहर में रहा करते थे । और आज नीलम की भी याद आ रही थी, अभी दो दिन पहले ही ’सर’ और नलिनी की बातचीत (उन दिनों -३८) को ’फ़ेसबुक’ पर ’शेयर’ किया था शायद इसलिए! सोचकर अचरज होता है कि ये सब लोग कैसे स्मृति में स्थिर छायाचित्रों की तरह आज भी अकस्मात् सामने आते ही ऐसे लगते हैं मानों अभी हाथ बढ़ाकर उन्हें छू लूँगा !
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( © Vinay Vaidya, vinayvaidya111@gmail.com)

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