July 27, 2019

मन की बात ...

सब का साथ, सबका विकास,
सब का विश्वास,  .... !
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जब एक दिन ब्लॉग लिखने का ख़याल आया तो लगा कि मेरे जैसे औसत आदमी के लिए 'मन की बात' कहने के लिए यह अच्छा प्लेटफॉर्म है।  अपनी बात लिख दो, जिसे पढ़ना हो पढ़े, न पढ़ना हो न पढ़े। उस दिन से आज तक कभी इसका महत्व नहीं प्रतीत हुआ कि कितने लोग इसे पढ़ते या पढ़ना पसंद करते होंगे।
वैसे भगवान की कृपा से जिंदगी जैसे-तैसे चल रही है, बाकी भी कट जाए दुआ कीजै !
औसत आदमी होने का फ़ायदा यह भी है कि आप दूसरों की चिंताओं, परेशानियों, समस्याओं की फ़िक्र करना छोड़ देते हैं।  क्योंकि फ़िक्र करने का तभी कोई मतलब है जब आप उन चिंताओं, परेशानियों, समस्याओं को दूर करने के लिए कुछ कर सकें। बेवजह फ़िक्र करने के लिए वक़्त और इतनी फ़ुर्सत भी ज़रूरी है जो औसत ('आम' नहीं; क्योंकि 'आम' से मुझे आम आदमी पार्टी वाला 'आम' याद आता है और ग़लतफ़हमी न हो, इसलिए मैं 'औसत' शब्द इस्तेमाल करता हूँ।) वैसे ही 'आप' से भी मुझे वही 'आप' याद आता है जो 'आम आदमी पार्टी' का संक्षिप्त नाम है।
फिर मुझे शक होता है कि क्या 'सब' का वही मतलब होता है जो मतलब 'औसत' ('आम' नहीं) का होता है?
क्या 'सब' और 'औसत' समानार्थी हैं ? क्या 'सब का साथ, सबका विकास, ...सब का विश्वास, सबका .... !' का वही मतलब है जो कि 'हर-एक और प्रत्येक का साथ, हर-एक और प्रत्येक का विकास और हर-एक और प्रत्येक का विश्वास' का हो सकता है?
लेकिन, 'सब' तथा 'हर-एक और प्रत्येक' की प्रधान-मंत्री जैसे अति विशिष्ट और महत्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति से यह अपेक्षा होना भी बिलकुल स्वाभाविक है कि वह 'सब' तथा 'हर-एक और प्रत्येक' के बीच सही संतुलन स्थापित करने की भरसक कोशिश करे ।
इसमें शक नहीं कि यह एक बहुत कठिन और दुःसाध्य कार्य है किन्तु प्रधान-मंत्री के पास जनता द्वारा दी गईं जितनी शक्तियाँ हैं उनसे उनके लिए यह असंभव नहीं है। लेकिन इसके लिए उनके पास वक़्त की पाबंदी तो होती ही है, और 'फ़ुर्सत' तो उनके शब्दकोश से भी नदारद होता होगा।
(हालाँकि उनसे मेरी तुलना का सवाल ही नहीं, और यह भी सच है कि मेरे पास बहुत वक़्त और फ़ुर्सत भी है, लेकिन मेरी इतनी ताक़त कहाँ कि अपनी खुद की ही जिंदगी को भी ठीक से पटरी पर ला सकूँ !)   
शायद इसीलिए यह उक्ति फ़ेमस (वायरल) हुई होगी :
"मोदी है तो मुमक़िन है।"
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