फ़ुरसत-नामा .....
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क्या लगता है आपको?
क्या फ़ेसबुक हमारे कलेक्टिव (collective) कॉन्शसनेस (consciousness) को बदल रहा है?
धीरे-धीरे हमारी सेन्सिबिलिटीज़ इरोड (erode) और कोरोड (corrode) हो रही हैं?
क्या हमारी इन्डिविजुअल कॉन्शसनेस (individual consciousness) इससे अप्रभावित रह सकती है?
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और अनायास जब मेरा ध्यान इरोड / erode और कोरोड / corrode की तरफ़ गया तो यह समझ में आया कि ये दोनों संस्कृत अवरोध और संरोध / स-रोध, तथा सहरोध से व्युत्पन्न हैं ...
जैसे सु-प्र-सं-शस-निष् सु-प्र-शंस-निष् (super-consciousness)
स-उप- संश-निष् ; स -उप-शंस-निष् (sub-consciousness)
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कुछ भी ?
गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता ....
गुल्ममिदं कंचन गुल-आपः पिंगलो वा,
गुल्मो-हर तथैव चापि वदति लोक एनं ॥
यह जो गुल्म है जिसमें पिंगल पुष्प खिलते हैं, लोक में गुलाब के नाम से जाना जाता है ।
पिंगल से पिंक हो जाना स्वाभाविक है, पिंगलेश / पिंकेश भी इसे प्रसन्नता से स्वीकार करते हैं ।
इसी प्रकार गुल्म से विकसित हुआ गुल्मो-हर जो गुल्म को वृक्ष बना देता है, गुलमोहर नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
गुल्म (झाड़ी, क्षुप से कुछ बड़ी) ; गुल
सिगरेट का गुल, कोई घटना (गुल खिलना), बात ; पंजाबी में ’गल’....
"की गल है ? "
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संस्कृत - लप् (बोलना ); -लापयति, आलाप, लप्जः ; लफ़्ज़ ; अल्फ़ाज़ ...
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अल्फा (a ) अंग्रेज़ी का पहला वर्ण है, Z अंतिम ....
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