July 30, 2018

फ़ुरसत-नामा .....


फ़ुरसत-नामा .....
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क्या लगता है आपको?
क्या फ़ेसबुक हमारे कलेक्टिव (collective) कॉन्शसनेस (consciousness) को बदल रहा है?
धीरे-धीरे हमारी सेन्सिबिलिटीज़ इरोड (erode) और कोरोड (corrode) हो रही हैं?
क्या हमारी इन्डिविजुअल कॉन्शसनेस (individual consciousness) इससे अप्रभावित रह सकती है?
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और अनायास जब मेरा ध्यान  इरोड / erode और कोरोड / corrode की तरफ़ गया तो यह समझ में आया कि ये दोनों संस्कृत अवरोध और संरोध / स-रोध, तथा सहरोध से व्युत्पन्न हैं ...
जैसे सु-प्र-सं-शस-निष् सु-प्र-शंस-निष् (super-consciousness)
स-उप- संश-निष् ; स -उप-शंस-निष् (sub-consciousness)
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कुछ भी ?
गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता ....
गुल्ममिदं कंचन गुल-आपः पिंगलो वा,
गुल्मो-हर तथैव चापि वदति लोक एनं ॥
यह जो गुल्म है जिसमें पिंगल पुष्प खिलते हैं, लोक में गुलाब के नाम से जाना जाता है ।
पिंगल से पिंक हो जाना स्वाभाविक है, पिंगलेश / पिंकेश भी इसे प्रसन्नता से स्वीकार करते हैं ।
इसी प्रकार गुल्म से विकसित हुआ गुल्मो-हर जो गुल्म को वृक्ष बना देता है, गुलमोहर नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
गुल्म (झाड़ी, क्षुप से कुछ बड़ी) ; गुल
सिगरेट का गुल, कोई घटना (गुल खिलना), बात ; पंजाबी में ’गल’....
"की गल है ? "
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संस्कृत  - लप् (बोलना ); -लापयति, आलाप, लप्जः ; लफ़्ज़ ; अल्फ़ाज़ ...
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अल्फा (a ) अंग्रेज़ी का पहला वर्ण है, Z अंतिम ....
ZZZZZZZZZ...ZZZZZZZZ...ZZZZZZZZZZZZZZZZ.

July 28, 2018

चार कविताएँ, फ़ुरसत में ...

चार कविताएँ, फ़ुरसत में ...
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कुछ गरज़ते हैं, पर बरसते नहीं,
कुछ बरसते हैं, पर गरज़ते नहीं,
कुछ गरज़ते हैं, बरस भी पड़ते हैं,
बारिशें झेलती रहती हैं सब-कुछ !
बारिशों से बादलों का साथ,
जैसे थामे हों हाथ में हाथ,
कभी तो छूट जाता है,
कभी छोड़ भी जाता है ।
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कुछ भी ...
जब हम बिज़ी होंगे,
कैसे इज़ी होंगे?
अच्छा है लेज़ी होना,
अच्छा है क्रेज़ी होना !
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सवाल !?
दुआएँ किसको दूँ मैं,
दुआएँ किससे लूँ मैं,
दुआएँ किससे माँगूँ,
किसके लिए मैं ?
जो माँगने पर भी न दे उससे?
जो बिन माँगे देता रहा है, उससे?
उसे मालूम है किसे क्या चाहिए,
क्यों परेशां करूँ खामखाँ उसको?
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 कुप्पा ...
अपनी तारीफ़ सुन मैं हुआ फूलकर कुप्पा,
डर है फूलकर फूट ही न जाऊँ कभी,
हे प्रभो अगले जनम न बनाना इन्सां,
इन्सां के बदले बना देना भले ही कपि...
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