November 21, 2017

कविता : तुम्हारे लिए,

आज की कविता

तुम्हारे लिए,
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मैं तुम्हारी कविता को सुनता भर हूँ,
सुनकर मेरा चेहरा,
ज़रूर कोई प्रतिक्रिया देता होगा,
लेकिन वह उसकी प्रतिक्रिया होती है,
-मेरी नहीं ।
मैं तुम्हारी कविता को सुनता भर हूँ,
तुम्हारी कविता उतर आती है ज़ेहन में,
हो जाती है मेरे वज़ूद का हिस्सा,
जिसे बाक़ी हिस्सों से अलग नहीं देखा जा सकता ।
मैं तुम्हारी कविता को सुनता भर हूँ,
जैसे सुनता हूँ,
बारिश की बूँदों की टप्-टप्,
जो बदलती रहती है लय-ताल,
कभी तेज़ कभी धीमे स्वरों में,
साँस सी चलती रहती है मेरे भीतर,
और मैं साँस को कभी महसूस न भी करूँ,
तो भी ज़िन्दा रहता हूँ उन्हीं से !
मैं तुम्हारी कविता को सुनता भर हूँ ।
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21-11-2017

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