November 14, 2019

ऊब : कोई मौसम

तसल्ली (कविता) 
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कोई मौसम कभी ठहरता नहीं,
और ठहरे तो ऊब जाता है,
कोई सूरज कभी ठहरता नहीं,
शाम होते ही डूब जाता है !
और सोचो, किसी दिन ना डूबे?!
दिल ये सोचकर ही दहल जाता है !
क्या ये मौसम भी ऊबता है कभी?
या कि वह सिर्फ बदल जाता है,
और क्या आदमी बदलता है कभी?
या कि वह सिर्फ ऊब जाता है?
फिर क्यों अक्सर ये लगा करता है,
वक़्त क्या हर घड़ी बदलता है?
सवाल यह भी, वैसे भी उठता है,
सवाल से क्यों ये दिल बहलता है?
दिल बहलाता है या मचलता है,
ठहरता है या कि बस टहलता है,
क्या दिल है नया / पुराना / ताज़ा ?
क्या ये ठहरा है या वाकई बदलता है?
सवाल ये भी सिर्फ मौसमी है,
हवा के साथ ही यह उड़ जाएगा,
भला-बुरा ये ऊब का मौसम,
पालक झपकते बीत जाएगा !
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