January 03, 2018

रेल वाली लड़की

कविता
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शायद यह रोमांटिक है,
शायद नहीं,
क्योंकि ’रोमांटिक’ शब्द के अपने-अपने अलग-अलग शब्दार्थ होते हैं,
और ’रोमांटिक’ शब्द के अपने-अपने अलग-अलग भावार्थ भी ।
’रोमांस करने’ के,
और ’रोमांटिक’ होने के भी ।
यह इस पर भी निर्भर होता है जिससे आप ’रोमांस’ कर रहे हैं,
या, जिसके लिए आप ’रोमांटिक’ हो रहे हैं,
उसकी और आपकी उम्र के बीच कितना फ़ासला है,
और इस पर भी,
कि ’वह’ व्यक्ति है, कोई प्राणी, कोई घटना, स्मृति या ठोस वस्तु,
जैसे किसी को ’पुरातत्व’ से भी रोमांस हो सकता है ।
अजीब लगता है न ।
फिर यह इस पर भी निर्भर करता है,
कि क्या आपका उस ’व्यक्ति’ से कोई नाता-रिश्ता भी है क्या ।
और अंत में एक हद तक इस पर भी,
कि आप पुरुष हैं, स्त्री हैं, या बस एक निपट मनुष्य,
जहाँ पुरुष या स्त्री होना प्रासंगिक और गौण है ।
उस स्टेशन पर ट्रेन से मेरे पहले वह उतरी थी ।
उसके बालों से वह गुलाब खुलकर नीचे गिर गया था,
जिस पर मेरी निग़ाह बस अभी-अभी ही पड़ी थी ।
पता नहीं वह क्या था,
कि मैं उसे कुचले जाते हुए नहीं देखना चाहता था ।
झुककर उठा लिया,
तब तक उसकी निग़ाह मुझ पर पड़ गई ।
’एक्सक्यूज़ मी!’
उससे नज़र मिलते ही मेरे मुँह से निकला ।
’जी, थैंक्स’
’अगर आप बुरा न मानें तो इसे लगा देंगें?’
उसने सहजता से कहा ।
और मैं रोमांटिक हो गया,
मेरे अर्थ में ।
उसके बालों में सावधानी से उस गुलाब को लगा दिया,
और वह फ़ुर्ती से पुनः ’थैंक्स’ कहकर,
फूट-ब्रिज की ओर बढ़ गई ।
उसके बारे में और कुछ याद नहीं रहा,
बस वह गुलाब अब भी कभी-कभी,
शिद्दत से याद आता रहता है,
और हाँ,
अब यह न पूछें कि उसकी उम्र क्या थी!
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