May 31, 2017

लक़ीरें

लक़ीरें
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वो लक़ीरें उम्र की,
ये लक़ीरें हाथ की,
जो बिताईं साथ हमने,
यादें वो साथ-साथ की!
उन लक़ीरों में लिखी वो,
दास्तानें बीत चुकीं,
इन लक़ीरों में लिखी हैं,
आनेवाले कुछ दिनों की,
उनमें हमने जो किया,
इनमें जो अब हम करेंगे,
वो झुर्रियाँ माथे की तो,
ये सलवटें अहसास की,
पगडंडियाँ दस्तूरे-राह,
पटरियाँ वो लीक सी,
ये उड़ते पंछी का सफ़र,
ये पंछी की परवाज़ सी,
आहटें फ़ुसफ़ुसाहटें,
अंदेशे फ़िक्रो- ख़याल,
हँसी, ये मुस्कुराहटें,
बेतक़ल्लुफ़ दिल का हाल,
वो लक़ीरें उम्र की,
ये लक़ीरें हाथ की,
जो बिताईं साथ हमने,
यादें वो साथ-साथ कीं!
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अभी-अभी अफ़गानिस्तान में जर्मन दूतावास के प्रवेश-द्वार के निकट हुए कार-बम विस्फोट की खबर पढ़ने के बाद ये लक़ीरें लिख रहा हूँ :
वो लक़ीरें इबादत की,
क़िताबों की, मज़हब की,
वफ़ा की, प्यार की,
इंसाफ़ और ईमान की,
ये लक़ीरें खून की,
आँसुओं की, अश्क़ों की,
शक़ो-शुबहा, ग़ुस्से की,
रंजो-ग़म अफ़सोस की ...!
वो लक़ीरें, ये लक़ीरें ...!
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