January 29, 2019

monologue / एकालाप

2019
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प्रारंभ हुए एक मास होने जा रहा है।
आज कुछ ऐसा लगा कि नए साल में नियमित रूप से इस ब्लॉग में कुछ नया लिखूँ :
कुछ 'स्वतंत्र' जिसे monologue / एकालाप भी कहा जा सकता है।
क्योंकि वैसे भी मैं जो कुछ लिखता हूँ वह किसी और के लिए नहीं लिखता।
इसलिए अगर किसी को मेरा लिखा रोचक लगे या न लगे, वह भी पढ़ने-न-पढ़ने के लिए 'स्वतंत्र' है ही !
क्योंकि मुझे किसी बारे में किसी से कोई बहस / उपदेश नहीं करना है।
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संकल्प को उठने दो,
द्वंद्व को खोने दो,
फिर जो होता है,
अनायास उसे होने दो।
चलते रहो, बहते रहो,
शब्द सेतु, छन्द नौका है,
शब्द है बहती पवन,
छन्द जैसे कि एक झोंका है,
कभी सेतु पर चलकर,
कभी झोंकों के सहारे से,
जीवन की इस सरिता में,
अज्ञात और चिर-नूतन,
अलक्षित लक्ष्य को आने दो।
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