January 04, 2018

सेटिंग्स : कविता

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कुछ भी !
सेटिंग्स-1,
कैमरे का सेटिंग बदल देते ही,
दृश्य भी कुछ यूँ बदल जाता है
जो भी होता है उसके फ़ोकस में,
बस वही ख़ास नज़र आता है,
और वह सब जो नहीं है ख़ास,
नज़र से ओझल ही हो जाता है,
यही तो मंत्र भी है मीडिया का,
जिसे बदलाव की ज़रूरत है,
उसे ऑउट ऑफ़ फ़ोकस कर दो,
उस पे फ़ोकस करो कैमरे को,   
जो बदल दे दृश्य का मतलब,
बदलाव बस वही असली है,
और बस वही ज़रूरी भी है,
जो बदल दे देखने की नज़र,
बाकी बिल्कुल ग़ैर-ज़रूरी है !
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कुछ भी !
सेटिंग्स -2.
सबकी साक़ी पे नज़र हो ये तो ज़रूरी है मगर,
सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं,
रहो कैमरे की नज़र में ये तो ज़रूरी है मगर,
नज़र के फ़ोकस में भी रहो ये ज़रूरी तो नहीं,
इसलिए क़ोशिश ये करो जैसा तुम चाहो,
ख़ास बनना है तो बने रहो फ़ोकस में !
ख़ास तो बस हुआ करता है साक़ी,
पीनेवाला हर कोई हुआ करता है !
पीनेवाला ही जाम पिया करता है,
और वही यूँ आम हुआ करता है !
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