December 06, 2017

ऊँट के बहाने ! विषयान्तर

विषयान्तर
कुछ भी !
ऊँट किस करवट बैठेगा,
लगा रहे अपने क़यास,
उसकी करवट की फ़िक़्र में,
बदल रहे हैं करवटें !
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ऊँट को संस्कृत में क्रमेलकः क्रम में चलनेवाला कहा जाता है ।
पैलेस्टाइन, फ़लस्तीन, पीलु (ताड़), phaḻam, फलम्, தமிழ்
में பழம் paḷam .
(क्योंकि रेगिस्तान में यही फल होता है!) तो प्रसिद्ध हैं ही!
संस्कृत में ही पीलु को ’कर’ अर्थात् ’हाथ’ और ताड़ को खर्जूर कहा जाता है, ’कर’ से ’कैरो’ / ’काहिरा’ तो क्रमेलक से कैमल और क्रैमलिन का ! संस्कृत में खर्जूरशालम् का अर्थ है वह स्थान जहाँ खजूर के पेड़ बहुतायत से पाए जाते हों ।
अनुमान है कि कैरो-जरूसलम् / क़ाहिरा-येरुशलम् इसी का अपभ्रंश होगा ।
दूसरी ओर अरबी में ख़ार का मतलब है ’काँटा’ । इससे भी खज़ूर / कैरो की उत्पत्ति समझ सकते हैं । क्या ’कैक्टस्’ ने भी अपना नाम इसी से पाया होगा?
ग़ौरतलब है कि ’पॉम’ का अर्थ हथेली और ताड़ दोनों है ।
हस्ति और हाथी को भी पीलु / फ़ील कहा जाता है, महावत को अर्थात् हाथी या ऊँट को अंकुश में रखनेवाले को ’फ़ीलवान’!
हस्ति और हथेली भी आकृति में ताड़ होते हैं !
प्रसंगवश : Chiero / कीरो नामक आयरिश हस्त-शास्त्र विशेषज्ञ तो प्रसिद्ध है ही !
(सोचता हूँ इतना ’फील’ नहीं होना चाहिए!)
बहरहाल सुप्रभात!
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