December 17, 2017

मन नहीं मेरा बस / किस्सी

कुछ भी!
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’मन नहीं मेरा बस’,
योगिता ने कहा था सुबह ऑफ़िस जाने से पहले
’बस?
बस??’
पूछा अवनि ने ।
’पापा!
आप मदद करेंगे?’
’बोलो बेटे ?’
’सेनापति स्त्रीलिंग है पुल्लिंग?’
’पुल्लिंग!’
’हा-हा.., लॉक कर दिया जाए?’
’हाँ...!’
’प्रारब्ध और नियति में अंतर स्पष्ट करो।’
’जो हो रहा है वह प्रारब्ध है,
जो हो चुका, या हो चुकेगा वह नियति’
’हा-हा.., लॉक कर दिया जाए?’
’नीम का पेड़’ का लेखक कौन है?
’राही मासूम रज़ा ...’
’हा-हा.., लॉक कर दिया जाए?’
’शनिवार शुक्रवार से पहले और रविवार के बाद भी आता है !’
’यह कुछ अजीब नहीं है पापा?’
’हाँ, विचित्र किंतु सत्य’
’हाऊ स्वीट पापा!,
वह मेरे गाल पर किस्सी देती है,
’बाय ममा!
आपको ऑफ़िस के लिए देर न हो जाए!
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