November 07, 2017

इंडियन रोप-ट्रिक

इंडियन रोप-ट्रिक / कविता
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हैरत कि हवा में खड़ा रस्सा,
गिरता भी नहीं, हिलता भी नहीं,
मेले में आया, तो यहाँ खिंचा आया,
कौन है जादूगर पता नहीं मुझको,
देखता हूँ कई लोग हैं कतारबद्ध,
मैं भी हूँ उनमें से एक तमाशबीन,
और अब एक शख़्स आया आगे,
चढ़ने लगा है वो रस्से पे अब,
धीरे-धीरे वो पहुँच गया है वहाँ,
जहाँ दिखाई देता है रस्से का सिरा,
और फिर होता है अचानक ग़ायब,
हवा में घुल गया हो जैसे वो,
और अब आ गई मेरी भी बारी,
न कोई शक या डर न घबराहट,
सधे क़दमों से मैं जाता हूँ वहाँ,
दोनों हाथों में पकड़कर रस्सा,
पैरों से उसका सहारा लेकर,
और सब साँस रोककर के मुझे,
देखते हैं लोग बड़ी हैरत से मुझे ,
उन सबको भी आना है मेरे पीछे,
राज़ फिलहाल बस मुझे है मालूम,
और मैं लो पहुँच गया हूँ वहाँ,
जहाँ दिखाई देता है रस्से का सिरा,
ज़िन्दगी पड़ाव नहीं, चढ़ाव है एक,
चढ़ते जाना ही सबकी मंज़िल है,
और मंज़िल पे पहुँच जाने के बाद,
ऐसे हो जाना अचानक ग़ायब,
हवा में घुल गया हो जैसे कोई ।
और फिर पहुँच गया हूँ वहाँ,
मिल रहे हैं मेले के जहाँ टिकिट,
लग गया हूँ फिर से मैं कतार में,
अभी पूरी नहीं हुई हसरत ।
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