November 12, 2017

कविता से!

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कविता से!
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मैं प्रेयसि बन जाऊँ कविते,
तुम बन जाना प्रियतम,
तुम कविता रचना मुझ पर,
मैं इठलाऊँगा शर्माऊँगा!
रूठूँगा भी मैं कभी-कभी,
चाहे झूठा या सच्चा हो,
तब तुम मुझे मनाना प्रियतम,
सपना मीठा या कच्चा हो!
प्रकृति तुम्हारा देह-रूप,
मैं निराकार बस शून्य-व्योम,
नर्तकि तुम हो सतत नृत्य,
मैं हूँ अचल, निरंतर मौन!
तुम दिग्-दिगन्त तक फैले सुर,
लय तान ताल तुम छन्द-शब्द,
मैं श्रोता दर्शक बस विमुग्ध,
मेरा अस्तित्व केवल निःशब्द,
जब मैं तुम हो जाऊँगा,
जब तुम मैं हो जाओगी,
सृष्टि पूर्णता तब होगी,
तब तक तो है यह अपूर्ण ।
प्रणयोत्सव का मर्म यही ,
कवि कविता हों परम अनन्य,
कविता में कवि, कवि में कविता,
विलय परस्पर जीवन धन्य ।
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