November 02, 2017

कच्चा मन, पक्का मन ...

कुछ भी !
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ख़याल कच्चा है, कच्चा ही उसे रहने दो,
दिल जो बच्चा है, बच्चा ही उसे रहने दो,
ख़याल दिल में अंधड़ से चले आते हैं,
दिल में धूल बस छोड़कर चले जाते हैं,
धूल बस बना देती है दिल को बोझिल,
क्यों उसमें ख़यालों की झलक पाते हैं?
ख़याल ताज़ा है, आहट है नए मेहमाँ की,
ख़याल नाज़ुक है छुअन है उसमें तितली की,
ख़याल हर रंग में हर रूप लिए रहता है,
बस वो दिल को छूकर के गुज़र जाता है,
दिल जो बस फूल है, फूल ही उसे रहने दो,
दिल के इस फूल पर धूल मत चढ़ने दो,
और जब चढ़ने लगे दिल को सूख जाने दो,
दिल को हर दिन नए फूल सा खिल जाने दो,
मन ये जो पौधा है जिस पे फूल लदे रहते हैं,
हाँ ये करता है इंतज़ार सदा तितली का,
हाँ ये करता है इंतज़ार फूलों भौरों का ।
ये देवता नहीं जिस पे चढ़ाओ तुम फूल,
हाँ ज़रूरी है न चढ़ने दो इस पर धूल,
मन ये हर रोज़ हुआ करता, जागता है नया,
और हर रंग में बढ़ता ही रहता है हर रोज़,
ये जवान ही हुआ करता है, दिन पर दिन,
ये कभी बूढ़ा नहीं होता न मरता है कभी,
राज़ इसका कभी अगर तुम ये समझ जाओगे,
इसमें जीवन की हक़ीकत भी समझ जाओगे ।
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कच्चा मन, पक्का मन ...


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