October 15, 2017

क्षणिकाएँ

काश !
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इतने फूल खिला करते हैं,
प्रकृति की बगिया में,
कितना अच्छा होता,
इन्सां भँवरा या तितली होता!
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इतने झरने कल-कल करते हैं,
धरती के आँचल में,
कितना अच्छा होता,
इन्साँ कछुआ या मछली होता!
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