October 14, 2017

मन की चुगली

आज की कविता / मन की चुगली
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सपने मन की चुगली हैं,
छुप जाया करती हैं जो,
छोटी-मोटी आहट से,
मछली हैं नीरव जल की ।
जब कोलाहल है मन का,
उठती हों विचारों की आँधी,
आखेटक मँडराते हों जब,
आहट होती है हलचल की ।
बगुले बैठे हों ध्यानमग्न,
तो वे धोखा खा जाती हैं,
बेबस हो जाती हैं शिकार,
घटना है हर हर पल की ।
जब सो जाता है सब शोर,
नीरवता फैली हो चहुँ ओर,
उन्मुक्त भाव से क्रीडारत,
खेलती और उछलती हैं ।
वे अन्तर्मन की ध्वनियाँ,
वे अवचेतन की परियाँ,
सपनों की कोमल कलियाँ,
अंधेरों में ही खिलती हैं ।
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