September 05, 2017

पञ्च-सीलानि pañca-sīlāni

भूमिका 
फ़ेसबुक के मेरे पेज पर 23  अगस्त 2017 को मैंने भूटान-तिब्बत-भारत की सीमा पर डोकलाम में भारतीय और चीनी फ़ौज़ों के युद्ध के लिए तैयार स्थिति में होने पर लिखा था :

पंचशील के सिद्धान्त को तो चीन ने तभी दफ़ना दिया था जब उसने ल्हासा पर अधिकार कर लिया और दलाई लामा को भारत भागने पर मज़बूर कर दिया, जिन्हें भारत ने शरण दी थी ।
आज जब शी जिनपिंग (习近平, Xi Jinping), का यह वक्तव्य पढ़ा कि चीन चाहता है कि वह पंचशील के  मार्गदर्शन में भारत से संबंध सुधारे, तो मुझे याद आया और मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ हुआ कि वास्तव में कोई ब्रह्माण्डीय ’बुद्ध-चेतना’ संसार के लिए मार्गदर्शन दे रही है ।
यदि चीन वास्तव में ईमानदारी से इस प्रेरणा पर अमल कर सकता है, तो वह वास्तव में आज भी विश्व-विजेता बन सकता है और पूरी दुनिया के लोगों के दिलों को जीत सकता है लेकिन यदि उसके दिल में कपट है (जैसा कि पिछली सदी छठे दशक में था), तो इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती ।
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पञ्च-सीलानि
pañca-sīlāni 
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पञ्चशील का सिद्धांत
(मौलिक रूप)
बुद्ध-प्रणीत  
(बौद्ध धर्म के अनुसार) 
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पाणादिपाता वेरमणि
सिक्खापदं समादियामि ...१.
(मैं प्राणियों की हिंसा नहीं करूँगा।)
अदिन्नादाना वेरमणि
सिक्खापदं समादियामि ...२.
(जो मुझे दिया नहीं गया है, उसे मैं (बलपूर्वक) नहीं लूँगा।)
कामेसु मिच्छाचार वेरमणि
सिक्खापदं समादियामि ...३
(मैं व्यभिचार नहीं करूँगा। )
मूसावाद वेरमणि
सिक्खापदं समादियामि ...४
मैं मिथ्याभाषण नहीं करूँगा।)
सुरा-मेरय-मज्जा-पमादट्ठाना वेरमणि
सिक्खापदं समादियामि ...५
मैं ऐसे मादक-द्रव्यों का सेवन नहीं करूँगा जिनसे मेरे चित्त में विकार उत्पन्न हो। ) 
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pañca-sīla -s The Five Precepts of Buddha
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pāṇādipātā verāmaṇi
sikkhāpadaṃ samādiyāmi ...1.
adinnādānā verāmaṇi
sikkhāpadaṃ samādiyāmi ...2.
kāmesu micchācāra verāmaṇi
sikkhāpadaṃ samādiyāmi ...3
mūsāvāda verāmaṇi
sikkhāpadaṃ samādiyāmi ...4
surā-meraya-majjā-pamādaṭṭhānā
sikkhāpadaṃ samādiyāmi ...5
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प्रसंगवश याद आया :
ये जो शहतीर है, पलकों पे उठा लो यारों,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारों
दर्दे-दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारों
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारों
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे,
आज सन्दूक से वो ख़त तो निकलो यारों !
(स्व. दुष्यन्त कुमार)
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