August 25, 2017

तथ्य : एक यथार्थ

आज की कविता
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तथ्य : एक यथार्थ
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कोई खुद से बातें कैसे कर सकता है!
बातें तो दो के बीच हुआ करती हैं ।
लेकिन अकसर ही मैंने ये भी देखा है,
किसी-किसी को बातें करते खुद से ।
फिर जब मैं उससे बातें करने लगा,
मुझे नहीं मालूम कि किससे बातें कीं!
दो जो पहले आपस में बातें करते थे,
उनमें से कौन है जिससे मैंने बातें कीं?
और बाद में जब उससे मिलकर मैं लौटा,
चलते-चलते ही मेरे मन ने जब सोचा ।
तो सवाल यह मेरे ही तो मन आया,
क्या मैं भी खुद से ही बातें करता हूँ?
बातें तो दो के बीच हुआ करती हैं,
क्या सचमुच मैं बँटा हुआ हूँ दो में ?
क्या यह बस एक ख़याल ही नहीं मेरा?
ख़याल ही तो बातें करता है ख़याल से!
वह दो होकर बातें करता था जैसे खुद से,
जिसको देखा था मैंने बातें करते खुद से ।
जब देखा था तब उसको ही बस देखा था,
और तभी तो यह ख़याल मेरे मन आया,
उसके पहले कहाँ कौन सा था ख़याल?
जब देखा था तब क्या था मैं बेख़याल?
शायद ही कोई यक़ीं करेगा इस पर,
सिर्फ़ वही जिस पर गुज़रा हो ऐसा कुछ!
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