August 20, 2017

कला का मूल्य

आज की कविता
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फूलवाले बाबा!
जैसे फूलवाले बाबा लाते हैं फूल रोज़,
ऐसी निष्ठा से जैसे प्रभु को हों अर्पित,
नहीं पूछते ’बदले में क्या दोगे तुम’,
और भक्त भी खुश हो केवल यही सोचते,
कितने सुन्दर फूल कितनी भीनी महक!
मेहनत से लाये, तरो-ताज़ा हैं अब तक!
भक्त कभी कोई विवेचना कर देते हैं,
केवल प्रसंगवश, अहोभाव से भरकर,
फूलवाले बाबा केवल मुस्कुरा देते हैं,
कहते हैं प्रकृति ने बाँटा, हमने पाया,
प्रकृति या प्रभु को भी नहीं पता होगा,
उसकी कला का मूल्य, कितना प्रसाद!
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