October 11, 2016

आज की कविता / नारी

आज की कविता / नारी
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मूर्ति बनकर खड़ी हूँ झुककर तुम्हारे सामने
चिरकाल से श्रद्धावनत प्रियतम तुम्हारे सामने
संजोकर लाई हृदय वह कर दिया अर्पित तुम्हें
दीप कर के प्रज्वलित प्रस्तुत तुम्हारे सामने ।
तुमको माना परम प्रभु किंतु न जाना कभी
शीश यह था क्यों झुकाया मैंने शिला के सामने
यदि शिला भी आज होती पिघल जाती मोम सी
पर न तुम पिघले न टूटे पुरुष मेरे सामने !!
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