September 26, 2016

अपने-राम

अपने-राम
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कल आकाशवाणी पर एक अद्भुत् वक्तव्य सुना :
वे कह रहे थे :
"... ’धर्म-निरपेक्षता’ की परिभाषा को बहुत तोड़ा-मरोड़ा गया है ।"
अपने-राम वैसे तो राजनीति और धर्म के मामले में दखलन्दाज़ी करने से  बचने की भरसक क़ोशिश करते हैं, किन्तु भारत से प्रेम के चलते कभी-कभी झेलना असह्य हो जाता है । बोल ही पड़े :
"किस सफ़ाई से उन्होंने इस सवाल को उठने ही नहीं दिया कि क्या धर्म की परिभाषा को ही पहले से ही तोड़ा-मरोड़ा नहीं गया था? परंपराओं पर ’धर्म’ का लेबल किसने चिपकाया? कब और क्यों चिपकाया? उन्हें ’समान’ समझे जाने का आग्रह किसका था? परंपराएँ, - जिनके आदर्श, ’विश्वास’, ’मत’, उद्देश्य और आधारभूत सिद्धान्त, प्रवृत्तियाँ परस्पर अत्यन्त अत्यन्त भिन्न, यहाँ तक कि विपरीत और विरोधी हैं, उनके परस्पर समान होने का विचार ही मूलतः क्या एक भ्रामक अवधारणा नहीं है?"
वे कह रहे थे :
’धर्म-निरपेक्षता’ की परिभाषा को बहुत तोड़ा-मरोड़ा गया है ।
"किसने और कब और क्यों तोड़ा?"
यह प्रश्न हमारे मन में उठे, इससे पहले ही वे अपना वक्तव्य पूर्ण कर चुके होते हैं ।
वे कुशल राजनीतिज्ञ हैं इससे इनकार नहीं और कुशल राजनीतिज्ञ की यही पहचान है कि वह मौलिक प्रश्नों को दबा देता है, काल्पनिक (शायद ’आदर्शवादी’) प्रश्न पैदा कर लेता है और मूल प्रश्न से लोगों का ध्यान हटाकर काल्पनिक प्रश्नों और समस्याओं पर केन्द्रित कर लेता है । सभी कुशल राजनीतिज्ञ इस कला में निष्णात होते हैं ।
क्या राजनीतिक या कोरे बुद्धिजीवी, साहित्यकार, ’विद्वान’ तथाकथित ’विचारक’ और समाज में सफल कहे जानेवाले लोग कभी मूल प्रश्नों को सीधे देखने का प्रयास करते हैं?
वे किसी आदर्श, उद्देश्य, विचार / सिद्धान्त रूढ़ि, परंपरा से ही शक्ति प्राप्त करते हैं और उसी आधार पर अपनी ऊर्जा केन्द्रित करते हैं और किसी तरह जैसे-तैसे स्थापित हो जाते हैं । यदि वे ’असफल’ भी रह जाते हैं तो कहा जाता है कि उन्होंने अपना सब-कुछ संपूर्ण जीवन ही उस महान् उद्देश्य के लिए न्यौछावर, बलिदान, होम , कुर्बान कर दिया । 'त्याग' की उनकी मिसाल की राजनीतिक-प्रवृत्ति से प्रेरित कुछ दूसरे लोग फिर उनकी ’मशाल’ को जलाये रखते हैं । इस प्रकार अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार की राजनीतिक प्रवृत्तियों की मशालें दिन-रात सतत जलती रहती हैं, और उन्हीं से हमारी दुनिया रौशन है, ... वरना तो हम अंधेरों में भटकते रहते !
अपने-राम सोचते हैं :
इस छोटी सी जिन्दगी में भजन करते हुए उम्र को जैसे-तैसे खींच ले जाएँ तो भी बहुत है ।
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