August 22, 2015

आज की कविता / सहारा

आज की कविता / सहारा
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ठिठका रहा मैं द्वीप सा पानी के बीच,
इर्द-गिर्द यातनाओं का प्रवाह,
डूबते थे तुम, सहारा दे सका,
धन्य था गद्-गद् हृदय, मैं अश्रु-सिक्त ।
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