February 22, 2015

आज की कविता -- फिर भी यह तथ्य है!

© Vinay Kumar Vaidya,
vinayvaidya111@gmail.com
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आज  की कविता
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फिर भी यह तथ्य है!
(मूलतः अंग्रेजी में लिखी मेरी कविता,
"It is still a fact "
 का हिंदी रूपांतरण )
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फिर भी यह तथ्य है !
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फिर भी यह  तथ्य है,
कि हम  कभी  तथ्य  का सामना नहीं करते.
और सिर्फ़ इसलिए,
क्योंकि हम  तथ्य  को देखते  तक नहीं .
और शायद ही कभी  हम,
उसे  जानने का प्रयास करते हैं.
और, जैसे ही, जिस क्षण भी,
वह हमारे समक्ष अवतरित होता है,
सर्वथा नग्न, अनावृत,और अपरिभाषित,
तत्काल ही उस पर हम,
एक आवरण  फेंक देते  हैं,
उसे हम एक शब्द भी कहने का,
मौक़ा तक नहीं देते.
और यद्यपि वह,
शब्द का उच्चार तक नहीं करता,
और शब्दों से कुछ कहता भी नहीं,
उसके पास फिर भी छिपाने जैसा भी,
कुछ नहीं होता.
वह जो कुछ भी है,
साक्षात् होता है.
वास्तविकता का सदैव प्रकट,
उज्जवल प्रकाश-मात्र.
और यदि हम पल भर भी चुप रह सकें,
तो तथ्य के रूप में विदा हो,
लौट जाया करता है,
उसी वास्तविकता में,
वह जिसका प्रकाश है.
बहा ले जाता है अपने साथ,
अपनी रौ में, हमें भी.
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और यद्यपि,
वास्तविकता जैसे कभी नई,
या पुरानी भी नहीं  होती,
तथ्य  भी वैसे ही,
कभी पुराना नहीं होता.
सदा ही नया होता है वह भी.
- वास्तविकता की ही तरह.
उसकी ही तरह वह भी,
न तो एक होता है,
-न ही अनेक.
किन्तु हमारा तर्क,
और हमारी टिप्पणी,
अकस्मात् ही उसे खंडित कर देती है,
बहुत से, विविध और असंख्य रूप देकर,
बाँट देती  है, टुकड़े-टुकड़े !
क्या यह आश्चर्य नहीं है,
कि कल्पना कैसे तथ्य को,
फ़ौरन ही नया जामा पहना देती है!
बदल देती है उसे,
ले जाती है हमें,
अराजक संघर्षपूर्ण संसार में.
जबकि तथ्य का मौन दर्शन,
हमें वास्तविकता से जोड़ देता है.
कल्पना से परे और पूर्व की वास्तविकता से,
हम जिसके आलोक-मात्र हैं.
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