October 26, 2014

आज की कविता : 26 /10/2014 / दुःस्वप्न

आज की कविता : 26 /10/2014
_______________________

दुःस्वप्न
--
डर,
एक दुःस्वप्न सा,
लौट आता है,
ख़याल तो होता है,
कि वह अचानक,
की-बोर्ड की किसी भी ’की’ को दबाते ही,
’ब्लो-अप’ की तरह,
आक्रमण कर देगा,
पर वह इतना सतर्क और धूर्त होता है,
कि किसी सर्वथा अप्रत्याशित क्षण में ही,
झपटकर दबोच लेता है,
किसी चीते की तरह,
जब किसी क्षण के दसवें हिस्से के लिए,
मैं अनायास अन्यमनस्क हो जाता हूँ ।
लेकिन कोई इलाज नहीं है मेरे पास,
अगर मुझे दुःस्वप्न से बचना है,
तो जागृत रहना होगा,
हर पल,
जागते हुए,
स्वप्न में,
या गहरी से गहरी नींद में भी !
-- ©

No comments:

Post a Comment