September 19, 2014

~~ कल का सपना : ध्वंस का उल्लास / 26 ~~

~~ कल का सपना : ध्वंस का उल्लास / 26 ~~
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परसों दोपहर या रात्रि में, एक स्वप्न देखा । एक स्नेही मित्र के साथ मैं जंगल में हूँ  बहुत कम वृक्ष आस-पास हैं, और जमीन मटमैली हल्की लाल-पीली सी है । अचानक देखता हूँ कि वे मित्र कहीं दिखाई नहीं दे रहे । थोड़ी दूर पर एक वृक्ष है जिस पर दो-तीन बड़ी शाखाएँ और जरा से पत्ते हैं, या शायद वो भी नहीं  । सोचता हूँ कि वे मित्र उस वृक्ष पर तो नहीं चढ़ गए हैं? उन्हें आवाज देता हूँ लेकिन मेरी आवाज में इतनी ताकत नहीं है शायद कि उन तक पहुँच सके । कुछ दूरी पर एक मनुष्य दिखलाई देता है, जो मेरे बड़े भाई जैसा प्रतीत होता है । मैं सोचता हूँ कि वह ग्रामीण सा, बूढ़ा सा व्यक्ति जो मेरे बड़े भाई जैसा प्रतीत हो रहा था, तो मेरा मित्र नहीं कोई और ही है । और स्वप्न टूट जाता है ।
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कल, और आज भी सुबह से इस स्वप्न के बारे में दो-तीन बार सोचा । उस मित्र को फोन करने का खयाल आता है, लेकिन चूँकि उसे वैसे ही बहुत जरूरी होने पर ही फोन करता हूँ, इसलिए वह भी जरा मुश्किल है । बस इन्तज़ार कर रहा हूँ कि क्या होता है ! वैसे मेरा अनुमान है कि शायद वह स्नेही मित्र दिवंगत हो चुका है । चूँकि इस उम्र में हूँ, कि मेरी उम्र के कितने ही दोस्त और परिचित हर हफ़्ते दस दिन में दिवंगत होते रहते हैं, इसलिए उस मित्र के लिए चिन्ता नहीं है, बस थोड़ा सा कौतूहल अवश्य है ।
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